क्या है शंख से जुड़ा इतिहास और धर्म में इसका स्थान?
जानिए इसके महत्व और लाभ।
शंख क्या है?
शंख समुद्री जीवों द्वारा बनाया गया एक प्राकृतिक और पवित्र सीपी/खोल है। यह आमतौर पर सफेद रंग का होता है और इसके आकार-प्रकार में विविधताएँ होती हैं। इसे हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है।
शंख का धार्मिक महत्व
शंख हिंदू धर्म में गहराई से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि पवित्र ‘ॐ’ ध्वनि, जो सृष्टि की प्रथम ध्वनि है, शंख की ध्वनि से संबंधित है। शंख को समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक माना गया है और इसे सभी धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग किया जाता है।
धार्मिक अनुष्ठानों में शंख का उपयोग प्रार्थना के आरंभ या देवता के आगमन की घोषणा के लिए किया जाता है। कुछ स्थानों पर, इसमें पवित्र जल एकत्र कर वितरित किया जाता है। प्रत्येक उत्सव और शुभ आरंभ पर शंख ध्वनि की जाती है, जिसकी ध्वनि ताजगी और नई आशा का संचार करती है। पूजा के समय शंख में जल भरकर छिड़काव किया जाता है, जिससे वायुमंडल पवित्र हो जाता है और भक्तिभाव जागृत होता है।
शंख से जुड़ी भारतीय पौराणिक कथाएं
हिंदू साहित्य में शंख से संबंधित कई पौराणिक कथाएँ हैं। एक कथा के अनुसार, देवराज इंद्र को दुर्वासा ऋषि के शाप से कष्ट सहना पड़ा, जबकि दैत्यराज बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। संकट का समाधान ढूंढने हेतु, देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली और समुद्र मंथन का सुझाव दिया।
समुद्र मंथन से चौदह रत्न निकले, जिनमें से एक शंख भगवान विष्णु को समर्पित किया गया। इसी कारण, शंख का विशेष रूप से लक्ष्मी-विष्णु पूजन में प्रयोग किया जाता है। भगवान विष्णु का शंख, जिसे पाञ्चजन्य कहा जाता है, समृद्धि, सौहार्द, धन और भौतिक सुखों का प्रतीक माना जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता में शंख का उल्लेख
श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय में, विभिन्न योद्धाओं द्वारा अपने-अपने शंखों के नाद का प्रभावी वर्णन मिलता है। युद्ध के आरंभ में, प्रत्येक प्रमुख योद्धा ने अपने शंख का नाद किया, जो उनकी शक्ति और व्यक्तित्व का प्रतीक था।
उदाहरण स्वरूप:
"पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय:
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर:।।
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर:
नकुल: सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।"
इसका अर्थ है कि श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य नामक शंख का नाद किया, अर्जुन ने देवदत्त शंख बजाया, और भीमसेन ने महाशंख पौंड्र को ध्वनित किया। ये शंख न केवल युद्ध का उद्घोष करते थे, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखते थे।
शंख के स्वास्थ्य लाभ
शंख की पौराणिक महत्ता के साथ-साथ इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं। पीलिया, हड्डियों, दांतों और पेट की समस्याओं में, शंख में रातभर रखा जल लाभकारी माना जाता है, क्योंकि इसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम और सल्फर की प्रचुरता होती है।
शंख बजाने से उत्पन्न ध्वनि तरंगें शरीर के चक्रों को संतुलित करती हैं, वायुमंडल को शुद्ध करती हैं और रोगजनक जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक होती हैं। इससे फेफड़ों की क्षमता में सुधार, गले की मांसपेशियों और थायरॉयड के स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

शंख के प्रकार
शंख के विभिन्न प्रकार हैं, जिनके नाम देवताओं पर आधारित हैं। देवताओं के नाम पर आधारित शंखों में गणेश शंख, दक्षिणावर्ती शंख, वामवर्ती शंख, कौरी शंख, गौमुखी शंख, शंखिनी, हीरा शंख और मोती शंख प्रमुख हैं।
गणेश शंख
समुद्र मंथन के दौरान छठे रत्न के रूप में उत्पन्न शंख की आकृति बिल्कुल गणेशजी के समान दिखती थी, इसलिए इसका नाम गणेश शंख रखा गया। यह शंख दरिद्रता का नाशक और धन प्राप्ति का कारक माना गया।

दक्षिणावर्ती शंख
घर में दक्षिणावर्ती शंख का होना अत्यंत शुभ माना जाता है। इसे बजाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसे दाएं हाथ से पकड़ा जाता है और देवस्वरूप माना गया है। इसके पूजन से लक्ष्मी की प्राप्ति और संपत्ति की वृद्धि होती है।

कौरी शंख
कौरी शंख अत्यंत दुर्लभ होता है और इसे घर में रखने से भाग्य में वृद्धि होती है। कौरी को कई जगह कौड़ी के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीनकाल में कौरी का उपयोग गहनों में किया जाता था।

वामवर्ती शंख
वामवर्ती शंख को बांए हाथ से बजाया जाता है। इसे बजाने के लिए एक छिद्र होता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा को दूर किया जाता है।
इसके घर में होने सेसुख-शांति का वास होता है और यह आसानी से प्राप्त होता है।
मोतीशंख
मोती शंख को घर में स्थापित करने से सुख-शांति का वास होता है। इसे हृदय रोगों का नाशक भी माना गया है। इसकी नियमित पूजा से आर्थिक उन्नतिहोती है
और यदि इसे व्यापार स्थल पर रखा जाए तो व्यापार में घाटा नहीं होता।

महालक्ष्मीशंख
महालक्ष्मी शंख, जिसे श्रीयंत्र भी कहा जाता है, महालक्ष्मी का प्रतीक माना गया है।
इसकी ध्वनि अत्यंत सुरीली होती है और जिस घर में इसकी पूजाहोती है,
वहां देवी लक्ष्मी का निवास होता है।

कामधेनुशंख
इस शंख को 'गौमुखी' के नाम से भी जाना जाता है। इसकी आकृति कामधेनु गाय के मुख जैसी होती है। इसे कलयुग में मनोकामना पूर्ति का साधनमाना गया है। इस शंख की पूजा से तर्कशक्ति प्रबल होती है

हीराशंख
हीरा शंख, जिसे पहाड़ी शंख भी कहा जाता है, महालक्ष्मी की पूजा के लिए तांत्रिक विधियों
में प्रयुक्त होता है। यह शंख अत्यंत मूल्यवान होता हैऔर पहाड़ों पर पाया जाता है। इसका स्वरूप दक्षिणावर्ती शंख के समान होता है।

भगवान कृष्ण का पाञ्चजन्य शंख
महाभारत काल में भगवान कृष्ण का पाञ्चजन्य शंख प्रसिद्ध था, जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक सुनाई देती थी। अन्य प्रसिद्ध शंख: अनंतविजय, देवदत्त, मणिपुष्पक, सुघोषदेवदत्त, मणिपुष्पक, सुघोष इत्यादि भी हैं।
निष्कर्ष
जो भी वस्तु आध्यात्मिक महत्व रखती है, उसकी देखभाल सही ढंग से और परंपराओं के अनुसार की जानी चाहिए। शंख इसका अपवाद नहीं है। यद्यपि शंख छोटा प्रतीत हो सकता है, परंतु इसके भीतर अत्यधिक उपचार शक्ति होती है। इसे घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य का संचार होता है।